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What is Cardiovascular Disease

हृदय-वाहिका रोग (Cardiovascular Disease - CVD) :


हृदय-वाहिका रोग (Cardiovascular Disease - CVD) एक ऐसी स्थिति है जिसमें हृदय और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगों का एक समूह शामिल होता है। यह विश्व भर में मृत्यु और विकलांगता का प्रमुख कारण है। भारत जैसे विकासशील देशों में हृदय रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण बदलती जीवनशैली, खराब खान-पान, मानसिक तनाव, और शारीरिक निष्क्रियता है।



CVD के प्रकार:



कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (Coronary Artery Disease - CAD): यह सबसे सामान्य प्रकार का CVD है जिसमें हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियाँ (कोरोनरी आर्टरीज़) संकुचित या अवरुद्ध हो जाती हैं। इसका परिणाम एंजाइना (सीने में दर्द) या हार्ट अटैक हो सकता है।


स्ट्रोक (Stroke): जब मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है, तो स्ट्रोक होता है। यह इस्केमिक (रक्त की आपूर्ति में रुकावट) या हेमरेजिक (रक्तस्राव) हो सकता है।


हृदय गति रुक जाना (Heart Failure): जब हृदय पर्याप्त रूप से रक्त पंप नहीं कर पाता है, तो यह स्थिति उत्पन्न होती है। यह पुरानी स्थिति होती है और इससे थकान, सांस फूलना आदि लक्षण होते हैं।


पेरिफेरल आर्टरी डिज़ीज़ (Peripheral Artery Disease - PAD): इसमें शरीर के अन्य हिस्सों जैसे हाथों या पैरों की धमनियाँ संकरी हो जाती हैं जिससे अंगों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है।


रेट कार्डियोमायोपैथी और एरिदमिया (Cardiomyopathy and Arrhythmia): ये स्थितियाँ हृदय की मांसपेशियों और हृदय की धड़कनों में अनियमितता से संबंधित होती हैं।



CVD के कारण:



हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension): उच्च रक्तचाप धमनियों को नुकसान पहुंचाता है और CVD का प्रमुख जोखिम कारक है।


उच्च कोलेस्ट्रॉल (High Cholesterol): खून में अधिक कोलेस्ट्रॉल जमा होने से धमनियाँ ब्लॉक हो सकती हैं।


डायबिटीज: उच्च रक्त शर्करा हृदय की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है।


धूम्रपान और शराब: तम्बाकू और अत्यधिक शराब का सेवन हृदय पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।


मोटापा और निष्क्रिय जीवनशैली: अधिक वजन और व्यायाम की कमी से रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है।


तनाव: लंबे समय तक मानसिक तनाव हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाता है।



लक्षण:



CVD के लक्षण रोग के प्रकार पर निर्भर करते हैं, लेकिन सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:


सीने में दर्द या दबाव


सांस लेने में कठिनाई


थकान और कमजोरी


धड़कनों का तेज़ या अनियमित होना


हाथ, पैर या चेहरे का सुन्न होना (स्ट्रोक के समय)


चक्कर आना या बेहोशी



निदान (Diagnosis):



CVD की पहचान के लिए निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं:


ईसीजी (Electrocardiogram): हृदय की विद्युत गतिविधि की जांच करता है।


ईकोकार्डियोग्राफी: हृदय की ध्वनि तरंगों द्वारा छवि बनाकर उसकी कार्यक्षमता जांचता है।


स्ट्रेस टेस्ट: व्यायाम के दौरान हृदय की प्रतिक्रिया को मापा जाता है।


एंजियोग्राफी: रक्त वाहिकाओं की स्थिति देखने के लिए डाई और एक्स-रे का प्रयोग किया जाता है।


ब्लड टेस्ट: कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड स्तर की जांच।



उपचार:



दवाएँ (Medications):


बीटा ब्लॉकर, ACE इनहिबिटर, स्टैटिन्स आदि का प्रयोग।


रक्त पतला करने वाली दवाएँ जैसे एस्पिरिन।


सर्जरी और प्रक्रियाएँ:


एंजियोप्लास्टी: ब्लॉक धमनियों को खोलने के लिए बलून और स्टेंट का उपयोग।


बाईपास सर्जरी: रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाया जाता है।


पेसमेकर या डिफिब्रिलेटर का प्रत्यारोपण: एरिदमिया के मामलों में।


जीवनशैली में बदलाव:


संतुलित आहार (कम वसा, नमक, और चीनी)


नियमित व्यायाम


तनाव प्रबंधन (योग, ध्यान)


धूम्रपान और शराब से दूरी



रोकथाम (Prevention):



CVD से बचाव संभव है यदि प्रारंभिक चरणों में सावधानी बरती जाए:


स्वस्थ आहार अपनाएं: अधिक फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद लें।


नियमित व्यायाम करें: प्रति दिन कम से कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि जरूरी है।


धूम्रपान न करें: यह हृदय और फेफड़ों दोनों के लिए हानिकारक है।


वजन नियंत्रित रखें: BMI को सामान्य सीमा में रखें (18.5–24.9)।


नियमित स्वास्थ्य जांच: ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर की नियमित जांच करवाएं।



भारत में CVD की स्थिति:



भारत में हृदय रोग एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। युवा आबादी में भी यह तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में हृदय रोग से संबंधित मृत्यु दर विश्व के औसत से अधिक है। यह आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डालता है।



निष्कर्ष:



हृदय-वाहिका रोग एक धीमे-धीमे बढ़ने वाली लेकिन जानलेवा स्थिति है। आधुनिक जीवनशैली ने जहाँ सुविधाएं बढ़ाई हैं, वहीं यह रोगों को भी न्योता दे रही है। समय रहते जागरूकता, जीवनशैली में सुधार, और नियमित जांच ही इस रोग से बचाव और नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय है। "दिल की सुनो और उसे स्वस्थ रखो" – यही आज की सबसे जरूरी बात है।

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