स्ट्रॉबेरी (Strawberry) एक बेहद स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर फल है, जिसकी मांग भारत ही नहीं, पूरे विश्व में लगातार बढ़ रही है। यह फल विशेष रूप से होटल, केक, आइसक्रीम, जैम और जूस इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। अगर आप भी कम समय में अधिक मुनाफा कमाने वाली फसल की तलाश में हैं, तो स्ट्रॉबेरी की खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि स्ट्रॉबेरी की खेती कब करें, इसकी सही तकनीक क्या है, और किन-किन बातों का ध्यान रखकर आप एक सफल स्ट्रॉबेरी किसान बन सकते हैं।
1. स्ट्रॉबेरी की खेती कब करें?
स्ट्रॉबेरी की खेती मुख्य रूप से ठंडे मौसम में की जाती है। भारत में इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है। यह एक शीत ऋतु की फसल है, और अच्छी उपज के लिए दिन के तापमान 15°C से 25°C के बीच रहना चाहिए।
प्रमुख क्षेत्रों में बुवाई समय:
क्षेत्र
बुवाई समय
उत्तर भारत
अक्टूबर के मध्य से नवंबर तक
दक्षिण भारत
अक्टूबर से दिसंबर तक
पहाड़ी क्षेत्र
सितंबर से अक्टूबर तक
2. स्ट्रॉबेरी के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
जलवायु:
स्ट्रॉबेरी ठंडी और नम जलवायु में बेहतर होती है।
बहुत अधिक गर्मी और पाले से फसल को नुकसान हो सकता है।
फूल आते समय शुष्क और ठंडी हवाएं फसल के लिए अनुकूल होती हैं।
मिट्टी:
हल्की बलुई दोमट मिट्टी (Loamy Sandy Soil) सबसे उपयुक्त है।
pH मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
मिट्टी में जैविक पदार्थ की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
जल निकास की व्यवस्था उत्तम होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं।
3. किस्में (Varieties)
भारत में स्ट्रॉबेरी की कई किस्में प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
कैम्ब्रिज फेवरेट (Cambridge Favourite) – मध्यम आकार के मीठे फल।
चैंडलर (Chandler) – बड़े आकार और गहरे लाल रंग के फल।
सेल्वा (Selva) – उच्च उत्पादन क्षमता।
डगलस (Douglas) – जल्दी पकने वाली किस्म।
तायबेरी और एल्बा – शीत क्षेत्र के लिए उपयुक्त।
4. खेत की तैयारी और रोपाई
खेत की तैयारी:
खेत को पहले गहरी जुताई कर लें।
15-20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर मिलाएं।
1-2 बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।
प्लास्टिक मल्चिंग शीट बिछाएं ताकि नमी बनी रहे और खरपतवार न उगें।
रोपाई की विधि:
पौधों की रोपाई लाइन से लाइन दूरी 45-60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी पर करें।
पौधों को शाम के समय रोपें ताकि धूप से बचाव हो सके।
रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
5. सिंचाई और देखभाल
सिंचाई:
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें।
इसके बाद हर 7–10 दिन में हल्की सिंचाई करें।
ड्रिप इरिगेशन पद्धति सबसे उपयुक्त है, इससे पानी की बचत होती है और फसल अच्छी रहती है।
मल्चिंग (Mulching):
प्लास्टिक मल्चिंग से नमी बनी रहती है और खरपतवार नियंत्रित होता है।
इससे फल जमीन से सीधे संपर्क में नहीं आते, जिससे सड़न नहीं होती।
निराई-गुड़ाई:
जरूरत पड़ने पर निराई करें ताकि खरपतवार न बढ़े।
गुड़ाई से मिट्टी में ऑक्सीजन जाती है, जो जड़ों के लिए लाभकारी है।
6. खाद और उर्वरक प्रबंधन
जैविक खाद:
गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट, नीम खली आदि का उपयोग करें।
प्रति हेक्टेयर 20-25 टन जैविक खाद आवश्यक होती है।
रासायनिक उर्वरक:
NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) का संतुलित उपयोग करें।
रोपाई के 20-25 दिन बाद यूरिया का छिड़काव करें।
जिंक और बोरॉन की कमी से फूल और फल प्रभावित हो सकते हैं, अतः फोलियर स्प्रे करें।
7. रोग एवं कीट नियंत्रण
प्रमुख रोग:
पाउडरी मिल्ड्यू – पत्तियों पर सफेद परत बनती है।
ग्रे मोल्ड (Botrytis) – फलों पर सड़न।
रूट रॉट – जड़ें सड़ जाती हैं।
नियंत्रण:
रोगग्रस्त पौधों को तुरंत हटा दें।
फफूंदनाशी जैसे कैप्टन, बाविस्टिन का छिड़काव करें।
कीट:
थ्रिप्स, एफिड, नेमाटोड।
जैविक नियंत्रण:
नीम तेल, लहसुन-अदरक स्प्रे का प्रयोग करें।
ट्रैप और बायो कीटनाशकों का उपयोग करें।
8. तुड़ाई और उत्पादन
तुड़ाई:
रोपाई के लगभग 60–70 दिन बाद फलों की तुड़ाई शुरू होती है।
हर 2-3 दिन में ताजे फलों की तुड़ाई करनी चाहिए।
सुबह या शाम के समय तुड़ाई करें ताकि फल ताजे और सुरक्षित रहें।
उत्पादन:
एक स्वस्थ फसल से औसतन 25-30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन संभव है।
ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग से उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार होता है।
9. बाजार और मुनाफा
स्ट्रॉबेरी की मांग विशेष रूप से शहरों में अधिक है। आप इसे निम्न जगहों पर बेच सकते हैं:
सुपरमार्केट और फल मंडी
आइसक्रीम कंपनियों को थोक में
जैम और जूस निर्माता
होटल और कैफे
सीधे ग्राहक को "फार्म टू होम" मॉडल से
मुनाफा:
उत्पादन लागत ₹3–4 लाख प्रति हेक्टेयर
आमदनी ₹8–10 लाख प्रति हेक्टेयर
शुद्ध लाभ ₹4–6 लाख तक संभव
निष्कर्ष
स्ट्रॉबेरी की खेती न केवल स्वादिष्ट फल उत्पादन का माध्यम है, बल्कि यह एक लाभकारी व्यवसाय भी बन सकता है यदि वैज्ञानिक तरीके और समयबद्ध योजना से इसे अपनाया जाए। उचित जलवायु, अच्छी किस्मों का चयन, ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाकर किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
यदि आप परंपरागत खेती से कुछ नया करना चाहते हैं तो स्ट्रॉबेरी की खेती एक सुनहरा अवसर हो सकती है।
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