ब्रेकआउट क्या है?
ब्रेकआउट एक ऐसी स्थिति को कहते हैं जब किसी वित्तीय संपत्ति (जैसे शेयर, कमोडिटी आदि) की कीमत अपने पूर्व निर्धारित समर्थन (Support) या प्रतिरोध (Resistance) स्तर को पार कर जाती है, खास तौर से जब इस मूवमेंट के साथ ट्रेडिंग वॉल्यूम में भी बढ़ोतरी हो।
सपोर्ट और रेजिस्टेंस स्तर क्या होते हैं?
सपोर्ट लेवल: वह प्राइस पॉइंट जहां खरीदारी का दबाव बिकवाली के दबाव से ज्यादा होता है, जिससे कीमत नीचे गिरने से रुकती है।
रेजिस्टेंस लेवल: वह प्राइस पॉइंट जहां बिकवाली का दबाव खरीदारी के दबाव से ज्यादा होता है, जिससे कीमत ऊपर की ओर जाने से रुकती है।
ब्रेकआउट कब होता है?
जब कीमत सपोर्ट के नीचे या रेजिस्टेंस के ऊपर जाती है और ट्रेडिंग वॉल्यूम सामान्य से ज्यादा होता है, तो यह मानते हैं कि बाजार में कोई नया ट्रेंड बनने वाला है।
ट्रेडर्स आम तौर पर सपोर्ट और रेजिस्टेंस को पहचानकर ब्रेकआउट के बाद ट्रेड में प्रवेश करते हैं।
ट्रेडर्स तकनीकी एनालिसिस टूल्स (जैसे मूविंग एवरेज, ट्रेंडलाइन, पैटर्न्स) का इस्तेमाल करके संभावित ब्रेकआउट स्तर पहचानते हैं।
जब कीमत सपोर्ट/रेजिस्टेंस को "ज़ोरदार वॉल्यूम" के साथ पार करती है, तब ट्रेडर ब्रेकआउट दिशा में ट्रेड शुरू करता है।
रिस्क मैनेजमेंट: ट्रेडर स्टॉप-लॉस ऑर्डर का उपयोग करता है ताकि यदि ब्रेकआउट फर्जी निकले तो नुकसान सीमित रहे।
उदाहरण
मान लीजिए एक स्टॉक ₹100 (सपोर्ट) और ₹150 (रेजिस्टेंस) के बीच ट्रेड होता है। एक दिन अचानक कीमत ₹160 जाती है और वॉल्यूम भी सामान्य से ज्यादा होता है, तो ट्रेडर ब्रेकआउट मानकर खरीदता है। इसी तरह अगर कीमत ₹100 के नीचे गिरती है, तो शॉर्ट सेल या बेच सकते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें
सभी ब्रेकआउट ट्रेंड को नहीं दर्शाते, "फॉल्स ब्रेकआउट" भी होते हैं, जिसमें कीमत थोड़े समय के लिए लेवल के बाहर जाती है लेकिन वापस आ जाती है।
ब्रेकआउट सबसे ज्यादा असरदार तब होते हैं अगर वॉल्यूम उच्च हो।
सारांश:
ब्रेकआउट ट्रेडिंग एक स्ट्रेटेजी है जिसमें किसी एसेट के support/resistance level को पार करते ही नया ट्रेंड पकड़ने की कोशिश की जाती है, जिससे तेज़ प्राइस मूवमेंट का फायदा उठाया जा सके।

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