मल्टीवर्स क्या है
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जैसा ही कोई और व्यक्ति, जो आपके जैसे ही निर्णय ले रहा है, कहीं और किसी दूसरी दुनिया में मौजूद हो सकता है? या यह कि हमारे ब्रह्मांड के अलावा और भी ब्रह्मांड हो सकते हैं, जहाँ भौतिकी के नियम अलग हों, समय की दिशा बदल सकती हो या जीवन के स्वरूप बिल्कुल ही विचित्र हों?
यही विचार मल्टीवर्स (Multiverse) का आधार है। "मल्टीवर्स" का अर्थ है – "अनेक ब्रह्मांडों का समूह"। यह एक ऐसी अवधारणा है जिसने विज्ञान, दर्शन, धर्म और विज्ञान-कथा (science fiction) सभी में गहरी रुचि पैदा की है।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि मल्टीवर्स क्या है, इसके सिद्धांत क्या हैं, इसका वैज्ञानिक और दार्शनिक पक्ष क्या है, और क्या वास्तव में इसका अस्तित्व संभव है।
मल्टीवर्स की परिभाषा
मल्टीवर्स एक परिकल्पना है जिसके अनुसार हमारा ब्रह्मांड अकेला नहीं है, बल्कि इसके अलावा असंख्य ब्रह्मांड मौजूद हैं। ये ब्रह्मांड "पैरेलल यूनिवर्स" (Parallel Universes) या "वैकल्पिक ब्रह्मांड" कहे जाते हैं। हर ब्रह्मांड अपने-अपने भौतिक नियमों, आयामों और घटनाओं के साथ स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में हो सकता है।
इसका मतलब यह भी हो सकता है कि हर निर्णय के साथ एक नया ब्रह्मांड बनता है, जहाँ चीजें अलग ढंग से घटती हैं।
मल्टीवर्स की उत्पत्ति
मल्टीवर्स की धारणा कोई नई नहीं है। यह विचार प्राचीन भारतीय दर्शन, ग्रीक दार्शनिक विचारों और आधुनिक भौतिकी तक फैला हुआ है।
भारतीय संदर्भ में
हिंदू धर्म में "अनंत ब्रह्मांडों" की कल्पना पहले से की गई है। भागवत पुराण, विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में कहा गया है कि "भगवान विष्णु के रोम-रोम में अनगिनत ब्रह्मांड विद्यमान हैं।"
पश्चिमी दर्शन
ग्रीक दार्शनिक अनाक्सीमांडर और डेमोक्रिटस जैसे विचारकों ने भी समानांतर ब्रह्मांडों की बात की थी। लेकिन यह विचार आधुनिक वैज्ञानिक चर्चा में 20वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रमुखता से आया।
मल्टीवर्स सिद्धांत के प्रकार
विभिन्न वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोणों से मल्टीवर्स को अलग-अलग प्रकारों में बाँटा गया है। आइए इनके प्रमुख स्वरूपों को समझते हैं:
1. क्वांटम मल्टीवर्स (Quantum Multiverse)
यह विचार ह्यू एवरेट के "Many Worlds Interpretation" (1957) पर आधारित है। इसके अनुसार, हर बार जब कोई निर्णय होता है (जैसे आप चाय या कॉफी चुनते हैं), तो ब्रह्मांड दो भागों में बंट जाता है – एक जहाँ आपने चाय चुनी और दूसरा जहाँ आपने कॉफी।
2. कॉस्मिक मल्टीवर्स (Cosmic Inflation Multiverse)
यह सिद्धांत कॉस्मिक इन्फ्लेशन थ्योरी पर आधारित है, जिसे एंड्री लिंडे ने प्रस्तावित किया। बिग बैंग के समय ब्रह्मांड अत्यधिक तेज़ी से फैला, और उस विस्तार में कई ऐसे "बुलबुले" बने जो अपने आप में स्वतंत्र ब्रह्मांड हो सकते हैं।
3. ब्रेन मल्टीवर्स (Brane Multiverse)
यह विचार स्ट्रिंग थ्योरी से आता है। इसके अनुसार, हमारा ब्रह्मांड एक विशाल "ब्रेन" (brane – एक तरह की झिल्ली) पर टिका है, और समानांतर में अन्य ब्रेन भी हो सकते हैं जिनसे टकराव होने पर बिग बैंग जैसी घटनाएँ होती हैं।
4. मैथमैटिकल मल्टीवर्स (Mathematical Multiverse)
इसके अनुसार, जो कुछ भी गणितीय रूप से संभव है, वह कहीं न कहीं ब्रह्मांड के रूप में मौजूद है। यह सबसे व्यापक लेकिन विवादित सिद्धांत है।
मल्टीवर्स की वैज्ञानिक पड़ताल
अब सवाल उठता है: क्या मल्टीवर्स का अस्तित्व वैज्ञानिक दृष्टि से संभव है?
समर्थन में तर्क:
क्वांटम सिद्धांत – कई वैज्ञानिक मानते हैं कि क्वांटम यांत्रिकी की व्याख्या केवल "Many Worlds" थ्योरी से ही सुसंगत होती है।
कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड – कुछ असमानताएँ बिग बैंग के बाद की पृष्ठभूमि विकिरण (CMB) में देखी गई हैं जो मल्टीवर्स की ओर संकेत करती हैं।
गणितीय संगति – मल्टीवर्स कई गणितीय मॉडलों में स्वाभाविक रूप से उभरता है।
विरोध में तर्क:
प्रेक्षणीय प्रमाण की कमी – अब तक किसी भी मल्टीवर्स को सीधे तौर पर देखा या मापा नहीं गया है।
फाल्सिफायबिलिटी की समस्या – अगर हम कभी अन्य ब्रह्मांड को न देख पाएं, तो क्या यह एक वैज्ञानिक सिद्धांत कहलाएगा?
सरलता का सिद्धांत (Occam's Razor) – यह सिद्धांत कहता है कि जब तक जरूरी न हो, हमें अनावश्यक जटिलता से बचना चाहिए। मल्टीवर्स इस सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता है।
मल्टीवर्स और विज्ञान-कथा
मल्टीवर्स की धारणा ने हॉलीवुड फिल्मों, टीवी शोज़ और उपन्यासों में व्यापक रूप से जगह बनाई है।
कुछ प्रसिद्ध उदाहरण:
Doctor Strange in the Multiverse of Madness (Marvel)
Everything Everywhere All At Once
Interstellar (कुछ हद तक आयाम और समय का खेल)
Rick and Morty (एनिमेटेड शो में कई समानांतर ब्रह्मांडों की बात)
इन कहानियों में मुख्य पात्र कई ब्रह्मांडों में यात्रा करते हैं, जहाँ समय, व्यक्तित्व और वास्तविकता के नियम पूरी तरह बदल चुके होते हैं।
मल्टीवर्स का दार्शनिक और धार्मिक पहलू
मल्टीवर्स सिद्धांत का संबंध केवल विज्ञान से नहीं, बल्कि दार्शनिक और धार्मिक प्रश्नों से भी है।
दार्शनिक दृष्टिकोण:
क्या हमारी पसंदें पहले से तय हैं, या हर विकल्प के साथ एक नई दुनिया बन जाती है?
यदि अनंत ब्रह्मांड हैं, तो क्या हर व्यक्ति की प्रतिलिपि भी अनंत है?
धार्मिक दृष्टिकोण:
कुछ इसे सृष्टिकर्ता की अनंत संभावनाओं का प्रमाण मानते हैं।
अन्य इसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे सृजन, पालन और विनाश के चक्र से जोड़ते हैं।
क्या मल्टीवर्स को सिद्ध किया जा सकता है?
आज की तकनीक और विज्ञान की सीमाओं के अनुसार, मल्टीवर्स को सिद्ध करना आसान नहीं है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती है:
सीमित प्रेक्षण क्षमता
सूचनाओं का ब्रह्मांड की सीमा के बाहर न जाना
सैद्धांतिक मॉडल्स की जटिलता
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि दो ब्रह्मांड कभी टकराएं, तो उनके प्रभावों के निशान हमें कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड में मिल सकते हैं।
निष्कर्ष
मल्टीवर्स आज भी एक रहस्य बना हुआ है – एक ऐसी अवधारणा जो विज्ञान और कल्पना के बीच की सीमाओं को धुंधला कर देती है। यह न केवल हमारे ब्रह्मांड को समझने की कोशिश है, बल्कि हमारे अस्तित्व, समय और वास्तविकता की परिभाषा को भी गहराई से चुनौती देती है।
चाहे यह सिद्ध हो या नहीं, मल्टीवर्स की कल्पना हमें सिखाती है कि हमारी सोच की सीमाएँ असीम नहीं हैं। हम एक ऐसे ब्रह्मांड में रह सकते हैं जो खुद एक विशाल प्रणाली का छोटा सा हिस्सा है।
और कौन जानता है — इस लेख को पढ़ने वाला "आप" शायद किसी और ब्रह्मांड में कोई और फैसला चुका हो!

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