'युग' एक संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ होता है — समय या काल। भारतीय संस्कृति, दर्शन, पुराण, वेद और ज्योतिष में 'युग' शब्द का प्रयोग विशेष रूप से समय के विभाजन के लिए किया जाता है। हिन्दू धर्म में, समय को चक्र रूप में माना गया है, जो सतत रूप से चलता रहता है -जन्म, विकास, क्षय और पुनर्जन्म। इस चक्र को ही 'युगचक्र' कहा जाता है। इसके अंतर्गत चार प्रमुख युग माने गए हैं: सत्य युग (कृता युग), त्रेता युग, द्वापर युग, और कलियुग। इन चारों युगों को मिलाकर एक 'चतुर्युग' या 'महायुग' बनता है।
सत्य युग (कृता युग):
अवधि: 17,28,000 वर्ष (पुराणों के अनुसार)
विशेषता: यह युग धर्म, सत्य, न्याय, और मानवता का प्रतीक था। इसे 'स्वर्ण युग' भी कहा जाता है।
धर्म के चार स्तंभ: सत्य, दया, तप और दान – सभी पूर्ण रूप से स्थिर थे।
मनुष्यों की आयु: हजारों वर्ष होती थी। लोग सीधे, सरल और तपस्वी होते थे।
प्रमुख अवतार: भगवान विष्णु ने इस युग में मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह अवतार लिए।
सत्य युग में अधर्म का नामोनिशान नहीं था। सभी लोग परमात्मा के भक्त थे और प्रकृति में संतुलन था।
त्रेता युग:
अवधि: 12,96,000 वर्ष
विशेषता: धर्म के चार स्तंभों में से तीन ही बचे थे। अधर्म ने थोड़ा प्रवेश किया।
प्रमुख घटनाएँ: इस युग में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम और श्रीराम के रूप में अवतार लिए।
रामायण काल: त्रेता युग में ही रामायण की कथा घटित हुई थी।
आधुनिकता की शुरुआत: यज्ञ, तप और दान के रूप में धर्म का पालन होता था, लेकिन भौतिकता का आरंभ यहीं से हुआ।
इस युग में राजा दशरथ और उनके पुत्र श्रीराम की मर्यादा, आदर्श, और धर्मपालन की कथाएं आज भी भारतीय संस्कृति का आधार हैं।
द्वापर युग:
अवधि: 8,64,000 वर्ष
विशेषता: धर्म के दो स्तंभ शेष थे। अधर्म और पापों में वृद्धि हुई।
प्रमुख घटनाएँ: महाभारत युद्ध इसी युग में हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी युग में जन्म लिया और गीता का उपदेश दिया।
ज्ञान और विज्ञान: इस युग में राजनीति, सैन्य बल, युद्ध नीति आदि का विस्तार हुआ। परिवारों में कलह शुरू हुई।
आध्यात्मिकता: श्रीकृष्ण के कारण यह युग भी धर्म और भक्ति से परिपूर्ण रहा, लेकिन लोगों में लोभ और मोह बढ़ा।
द्वापर युग को संघर्ष, वीरता और चेतना का युग कहा जा सकता है।
कलियुग:
अवधि: 4,32,000 वर्ष
वर्तमान युग: हम इस समय कलियुग में ही जी रहे हैं, जो महाभारत के बाद आरंभ हुआ।
विशेषता: धर्म का केवल एक स्तंभ (सत्य) बचा है। अधर्म, पाप, लोभ, मोह, हिंसा, द्वेष, असत्य, भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
भक्ति युग: हालांकि पाप का प्रकोप है, लेकिन इस युग में नाम-स्मरण (हरिनाम संकीर्तन) से मोक्ष संभव है। इसे भक्ति का युग भी कहा गया है।
श्री चैतन्य महाप्रभु, संत तुलसीदास, कबीर, गुरु नानक जैसे महापुरुष इसी युग में आए।
शास्त्रों के अनुसार, जब अधर्म अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाएगा, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेकर इस युग का अंत करेंगे और पुनः सत्य युग की शुरुआत होगी।
चतुर्युग और कल्प:
एक चतुर्युग = सत्य युग + त्रेता युग + द्वापर युग + कलियुग = 43,20,000 वर्ष
1000 चतुर्युग = 1 ब्रह्मा का दिन (जिसे कल्प कहा जाता है)
ब्रह्मा के एक दिन और रात का कुल समय = 2,000 चतुर्युग
हिन्दू कालगणना ब्रह्मांड के विस्तार और संहार को भी युगों के आधार पर समझती है। इस दृष्टिकोण से समय अनंत है और चक्रीय है।
युगों की सामाजिक व वैज्ञानिक व्याख्या:
कुछ आधुनिक विद्वान युगों को प्रतीकात्मक रूप में समझते हैं। उनके अनुसार, ये युग मानवीय चेतना के स्तरों को दर्शाते हैं:
सत्य युग = पूर्ण ज्ञान और आत्मिक जागरूकता
त्रेता युग = धर्म और विज्ञान में संतुलन
द्वापर युग = संघर्ष, युद्ध, और भटकाव
कलियुग = अज्ञानता, अधर्म, और भौतिकता की प्रधानता
कुछ वैज्ञानिक इन युगों की तुलना 'आइस एज', सभ्यता के विकास के चरणों या खगोलिक चक्रों से करते हैं।
निष्कर्ष:
युग को समय ही नहीं, बल्कि चेतना, नैतिकता और आध्यात्मिकता के चक्र भी हैं। हिन्दू दृष्टिकोण में यह समय का एक दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो यह बताता है कि मानवता कैसे जन्म लेती है, विकसित होती है, पतित होती है, और फिर पुनः जागृत होती है। वर्तमान में हम कलियुग में हैं, लेकिन यही समय आत्मचिंतन और भक्ति का है। युगों की इस अवधारणा से हमें यह सीख मिलती है कि समय सदा चक्र की भांति चलता है और परिवर्तन ही इसका मूल नियम है।

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