भारत में 14 जनवरी का दिन कई दृष्टिकोणों से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह दिन सांस्कृतिक, धार्मिक और मौसम परिवर्तन के दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखती है। इस दिन विभिन्न पर्व और दिवस पूरे देश में श्रद्धा, उल्लास और विविधता के साथ मनाए जाते हैं। मुख्य रूप से 14 जनवरी को मकर संक्रांति, उत्तरायन, पोंगल, लोहड़ी (कुछ स्थानों पर), खिचड़ी पर्व आदि मनाए जाते हैं। इन सभी आयोजनों का अपना ऐतिहासिक, पौराणिक और सामाजिक महत्व है।
1. मकर संक्रांति (Makar Sankranti):
मकर संक्रांति भारत के प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर आधारित है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, यानी सूर्य दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर गति करता है। यह दिन धार्मिक रूप से बहुत शुभ माना जाता है।
धार्मिक महत्व:
मकर संक्रांति को धर्म, पुण्य और मोक्ष से जोड़ा जाता है। इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। लोग दान-पुण्य करते हैं और विशेष रूप से तिल, गुड़, चावल और वस्त्रों का दान किया जाता है।
लोक परंपराएँ:
तिल-गुड़ की मिठाई का आदान-प्रदान "तिल गुड़ घ्या, गोड़ गोड़ बोला" जैसे वाक्यों के साथ किया जाता है।
पतंगबाजी का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है, खासकर गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में।
घरों में खिचड़ी, तिल के लड्डू और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
2. उत्तरायन (Uttarayan):
गुजरात में मकर संक्रांति को "उत्तरायन" कहा जाता है। इसे सूर्य के उत्तर दिशा की ओर जाने की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। इसे विशेष रूप से पतंग उत्सव के रूप में जाना जाता है।
गुजरात में उत्सव का स्वरूप:
अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में विशाल पतंग महोत्सव आयोजित किया जाता है।
विभिन्न रंगों और डिजाइनों की पतंगें आकाश में लहराती हैं।
"काई पो छे!" जैसे नारे गूंजते हैं।
यह पर्व सामाजिक समरसता और उत्साह का प्रतीक बन चुका है।
3. पोंगल (Pongal):
तमिलनाडु में मकर संक्रांति के दिन पोंगल उत्सव की शुरुआत होती है। यह चार दिन तक चलने वाला कृषि आधारित त्योहार है, जो सूर्य देव, वर्षा, फसल और पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
पोंगल के चार दिन:
भोगी पोंगल – पुराने वस्त्र और अनुपयोगी वस्तुएँ जलाकर नया जीवन प्रारंभ किया जाता है।
सूर्य पोंगल – मुख्य दिन होता है जिसमें सूर्य देव को मीठा पोंगल चढ़ाया जाता है।
मट्टू पोंगल – पशुओं विशेषकर गायों और बैलों को सजाया जाता है।
कन्या पोंगल / कन्नम पोंगल – घर की कन्याओं को विशेष भोज कराया जाता है।
4. लोहड़ी (Lohri):
हालाँकि लोहड़ी मुख्यतः 13 जनवरी को मनाई जाती है, परंतु कुछ स्थानों पर 14 जनवरी को भी इसका उत्सव होता है। यह पर्व मुख्यतः पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के कुछ अन्य हिस्सों में मनाया जाता है।
मुख्य परंपराएँ:
अलाव जलाकर उसके चारों ओर नाच-गान होता है।
तिल, गुड़, रेवड़ी, मूँगफली आदि अलाव में अर्पित किए जाते हैं।
यह नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
5. खिचड़ी पर्व (Khichdi Parv):
उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाने और खाने का विशेष महत्व है।
विशेष परंपराएँ:
लोग सुबह स्नान कर व्रत रखते हैं।
खिचड़ी, चूड़ा-दही और तिल के लड्डू खाए जाते हैं।
मंदिरों में विशेष पूजा और अन्नदान होता है।
गोरखनाथ मंदिर (गोरखपुर) में विशाल खिचड़ी मेले का आयोजन होता है।
वैज्ञानिक और मौसमी दृष्टिकोण:
मकर संक्रांति केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि खगोलिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। यह रबी की फसलों के पकने का भी समय होता है। किसानों के लिए यह नए मौसम और नई आशाओं की शुरुआत का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
14 जनवरी का दिन भारतीय संस्कृति में विविधताओं से भरपूर है। मकर संक्रांति से लेकर पोंगल, उत्तरायन और खिचड़ी पर्व तक, यह दिन हमारी कृषि परंपरा, ऋतु परिवर्तन और धार्मिक आस्था का जीवंत उदाहरण है। यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहने, समाज में प्रेम और सौहार्द बनाए रखने तथा जीवन में नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
0 Comments