2. लोक (Lok)
3. कर्म (Karma)
4. मंत्र (Mantra)
5. तप (Tap)
6. वीर्यम (Viryaam)
7. अन्नम (Annam)
8. मन (Man)
9. इंद्रिया (Indriya)
10. जल (Jal)
11. अग्नि (Agni)
12. वायु (Vayu)
13. आकाश(Akash)
14. श्रद्धा (Shraddha)
15. प्राण (Pran)
16. इशत्व (Ishtva)
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में “षोडश कला” (१६ कलाएँ) का विशेष उल्लेख आता है, लेकिन यह सामान्यतः भगवान श्रीकृष्ण या पूर्णावतारों की पूर्णता का द्योतक है। हालाँकि, "१६ आध्यात्मिक कलाएँ" शब्द का प्रयोग कुछ विशेष आध्यात्मिक मार्गों और शिक्षाओं में प्रतीकात्मक रूप से किया गया है
🌼 १६ आध्यात्मिक कलाएँ (16 Spiritual Arts/Disciplines)
1. श्रद्धा (Faith) – ईश्वर, गुरु, और आत्मा पर अटूट विश्वास।
2. भक्ति (Devotion) – प्रेम और समर्पण की भावना।
3. ध्यान (Meditation) – अंतर्मन की एकाग्रता और मौन में उतरना।
4. प्रार्थना (Prayer) – आत्मा की पुकार, ईश्वर से संवाद।
5. सत्य (Truthfulness) – जीवन में सच्चाई को अपनाना।
6. अहिंसा (Non-violence) – विचार, वाणी और कर्म से किसी को हानि न पहुँचाना।
7. संयम (Self-Control) – इंद्रियों, मन और वासना पर नियंत्रण।
8. वैराग्य (Detachment) – मोह और आसक्ति से मुक्ति।
9. सेवा (Seva) – निःस्वार्थ रूप से दूसरों की सहायता करना।
10. क्षमा (Forgiveness) – अपने व दूसरों के प्रति क्षमा भाव रखना।
11. करुणा (Compassion) – सभी प्राणियों के प्रति दया और संवेदना।
12. स्वाध्याय (Self-Study) – आत्मा, ग्रंथों और ज्ञान का अध्ययन।
13. मौन (Silence) – आंतरिक और बाह्य मौन की साधना।
14. तपस्या (Austerity) – कठिन साधनाओं द्वारा आत्मविकास।
15. समत्व (Equanimity) – सुख-दुःख, जय-पराजय में सम रहना।
16. समर्पण (Surrender) – स्वयं को ईश्वर या गुरु के चरणों में पूर्ण रूप से अर्पित करना।
📚 ध्यान दें:
ये कलाएँ शास्त्रीय रूप से "षोडश कला" (जैसे चंद्रमा की कलाएँ, श्रीकृष्ण की पूर्णता आदि) से अलग हैं।
इन १६ आध्यात्मिक कलाओं को विभिन्न गुरुओं, संतों और योग परंपराओं में आत्म-विकास के १६ चरण या गुणों के रूप में समझाया गया है
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