कला की परिभाषा:
"कला वह मानवीय अभिव्यक्ति है जो सौंदर्यबोध, कल्पना और रचनात्मकता के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है।"
कला के मुख्य 2 प्रकार है
1. संसारिक कला
2. आध्यात्मिक कला
कला के अन्य प्रमुख प्रकार (Types of Art):
कला को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से इसे निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जाता है:
1. दृश्यकला (Visual Arts)
जिसे आँखों से देखा जा सकता है।
उदाहरण:
चित्रकला (Painting)
मूर्तिकला (Sculpture)
फोटोग्राफी
वास्तुकला (Architecture)
छायाचित्रण (Photography)
ग्राफिक डिजाइन
2. श्रव्यकला (Auditory Arts)
जो कानों से सुनी जाती है।
उदाहरण:
संगीत (Music)
गायन (Singing)
वादन (Instrumental Music)
3. दृश्य-श्रव्य कला (Performing Arts)
जिसे देखा और सुना दोनों जा सकता है।
उदाहरण:
नृत्य (Dance)
रंगमंच (Theatre)
अभिनय (Acting)
चलचित्र (Cinema)
4. साहित्यिक कला (Literary Arts)
भाषा और लेखन के माध्यम से व्यक्त की जाने वाली कला।
उदाहरण:
कविता
कहानी
उपन्यास
निबंध
नाटक
5. लोककला और शिल्पकला (Folk and Craft Arts)
जो किसी क्षेत्र विशेष की परंपरा, संस्कृति और जीवनशैली से जुड़ी होती है।
उदाहरण:
मधुबनी चित्रकला
वारली चित्रकला
कठपुतली कला
कशीदाकारी (Embroidery)
मिट्टी के बर्तन बनाना
कला का महत्व:
मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रसार
मनोरंजन का साधन
सौंदर्यबोध का विकास
विचारों और भावनाओं की संप्रेषण शक्ति
64 arts of ancient india
"64 कलाओं" (64 Kala) का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों और विशेष रूप से "कामसूत्र" जैसे ग्रंथों में होता है। ये 64 कलाएँ जीवन में निपुणता, कला, संस्कृति और शिष्टाचार का परिचायक मानी जाती हैं। इन कलाओं का उद्देश्य व्यक्ति को बहुमुखी, सभ्य, और जीवन के हर पहलू में पारंगत बनाना है।
यहाँ पर 64 कलाओं की सूची और उनका हिंदी में संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
प्राचीन भारत की 64 कलाएं (चौंसठ कलाएँ):
1. गीतं – गायन की कला
2. वाद्यं – वाद्य यंत्र बजाना
3. नृत्यं – नृत्य करना
4. नाट्यं – अभिनय करना
5. आलेखनम् – चित्रकारी (पेंटिंग)
6. विक्रिया – शिल्पकला (मूर्तिकला आदि)
7. चित्रयोजनम् – चित्रों की रचना करना
8. माल्यग्रहणविनोद – फूलों की माला बनाना
9. केशविन्यास – केश सज्जा (हेयर स्टाइलिंग)
10. वस्त्रग्रहणविन्यास – वस्त्र पहनने और सजाने की कला
11. आभूषणज्ञानम् – आभूषण बनाना और पहनना
12. सैय्या रचना – शैय्या (बिस्तर) सजाना
13. सुगंध योजन – इत्र, धूप आदि की रचना
14. वारण रचना – श्रृंगार प्रसाधन की कला
15. आभरण रचना – आभरणों का निर्माण
16. कुक्कुट लक्षण ज्ञान – मुर्गों की पहचान
17. शुक आदि पक्षियों की भाषा जानना – तोते आदि की बोली समझना
18. भोजन पाक कला – खाना बनाना
19. पेय निर्माण – पेय पदार्थ बनाना
20. सुघ्राणविद्या – सुगंध की पहचान करना
21. हस्तनिर्माण – हाथ से चीजें बनाना
22. कविता लेखन – कविता की रचना
23. कथाकथन – कहानी सुनाना
24. समास्यापूरण – अधूरी कविता या वाक्य पूरा करना
25. पुराणज्ञान – पुराणों का अध्ययन
26. कुशल संवाद – वार्तालाप में निपुणता
27. सांकेतिका – इशारों से संवाद करना
28. चलंलिपि – गुप्त लेखन या कोड भाषा
29. काव्यालंकार – काव्य शास्त्र की जानकारी
30. चित्रकथा – चित्रों के माध्यम से कहानी कहना
31. नाट्यशास्त्र – नाटकों की रचना और मंचन
32. गीत रचना – गानों की रचना
33. यंत्र रचना – यंत्रों का निर्माण
34. गहनों की सज्जा – आभूषणों को सजाना
35. पुष्प सज्जा – फूलों से सजावट
36. फलों की सजावट – फलों से सज्जा
37. जल विद्या – जल से जुड़ी कलाएं
38. दिव्य वस्त्र निर्माण – विशेष वस्त्र बनाना
39. अक्षर विद्या – सुलेख
40. कायाकल्प विद्या – शरीर को सुंदर बनाना
41. रत्न परीक्षा – रत्नों की पहचान
42. धातु विद्या – धातु कार्य
43. काष्ठ विद्या – लकड़ी से काम
44. वास्तु कला – भवन निर्माण
45. मृत्तिका विद्या – मिट्टी की कला
46. चित्र लेखन – चित्र बनाना
47. आयन विद्या – रंगाई-छपाई
48. रूप सज्जा – शरीर की सजावट
49. कपड़े रंगना – वस्त्र रंगाई
50. वस्त्र बुना – कपड़ा बनाना
51. चित्रकला – चित्र बनाना
52. गंध युक्त सज्जा – इत्र, धूप आदि से सजाना
53. वायव्यकला – हवा से जुड़ी सजावट (पतंग आदि)
54. छाया ज्ञान – परछाई की विद्या
55. संगीत संयोजन – संगीत मिलाना
56. सांख्य विद्या – अंकगणित
57. ज्योतिष – खगोल और ज्योतिष
58. ध्वनि विद्या – आवाज की समझ
59. संकेत विद्या – प्रतीकों द्वारा समझ
60. तंत्र मंत्र विद्या – तांत्रिक ज्ञान
61. योग विद्या – योग की कला
62. वायुमंडल विज्ञान – मौसम की समझ
63. ध्वज विद्या – झंडों के संकेत समझना
64. रसायन विद्या – औषधि, जड़ी-बूटी की जानकारी
उद्देश्य और महत्त्व:
इन 64 कलाओं का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि व्यक्ति को पूर्ण, सभ्य, और सुसंस्कृत बनाना था। यह जीवन के हर पक्ष को समृद्ध करता था—शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक रूप से।
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