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What is dialysis

डायलिसिस क्या है
परिचय

डायलिसिस एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति की किडनी (गुर्दे) अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर पा रही होती हैं। सामान्यतः, स्वस्थ किडनी शरीर से अपशिष्ट पदार्थ, अतिरिक्त पानी, और विषैले तत्वों को मूत्र के माध्यम से बाहर निकालती हैं। लेकिन जब किडनी खराब हो जाती हैं, तो ये कार्य प्रभावित हो जाते हैं और शरीर में विषैले तत्व इकट्ठा होने लगते हैं। ऐसे में डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है।

डायलिसिस का उद्देश्य

डायलिसिस का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:
शरीर से अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त द्रव को निकालना।
इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे पोटैशियम, सोडियम) के संतुलन को बनाए रखना।
रक्त में एसिड-बेस बैलेंस को नियंत्रित रखना।
डायलिसिस किडनी की पूरी तरह से जगह नहीं ले सकता, लेकिन यह तब तक जीवन को बनाए रखने में मदद करता है जब तक कि मरीज की किडनी में सुधार न हो जाए या किडनी ट्रांसप्लांट न हो जाए।

डायलिसिस के प्रकार

डायलिसिस मुख्यतः दो प्रकार का होता है:
1. हीमोडायलिसिस (Hemodialysis)
इस प्रक्रिया में एक मशीन का उपयोग करके रक्त को शरीर से बाहर निकाला जाता है, उसे एक विशेष फिल्टर (डायलाइज़र) से होकर गुजारा जाता है, जो अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त द्रव को निकालता है, और फिर साफ रक्त को शरीर में वापस डाल दिया जाता है।

हीमोडायलिसिस की विशेषताएँ:


प्रक्रिया आमतौर पर सप्ताह में 2 से 3 बार की जाती है।
हर सत्र 3 से 5 घंटे तक चलता है।
यह अस्पताल, डायलिसिस केंद्र, या कभी-कभी घर पर भी किया जा सकता है।
रक्त निकालने के लिए मरीज की नसों में विशेष शिरा (फिस्टुला या ग्राफ्ट) बनाई जाती है।

2. पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal Dialysis)

इस प्रक्रिया में किडनी के स्थान पर पेट की झिल्ली (पेरिटोनियम) को फिल्टर की तरह इस्तेमाल किया जाता है। एक विशेष तरल (डायलिसेट) को पेट की गुहा में डाला जाता है, जहाँ यह अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त द्रव को अवशोषित करता है। कुछ समय बाद यह तरल बाहर निकाल दिया जाता है और नया तरल डाला जाता है।

पेरिटोनियल डायलिसिस के प्रकार:

सीएपीडी (CAPD - Continuous Ambulatory Peritoneal Dialysis): यह एक मैनुअल प्रक्रिया है जो दिन में कई बार की जाती है।
एपीडी (APD - Automated Peritoneal Dialysis): यह रात में एक मशीन की मदद से होती है।
डायलिसिस की आवश्यकता कब होती है?
डॉक्टर तब डायलिसिस की सलाह देते हैं जब:
किडनी की कार्यक्षमता 10-15% से कम रह जाती है।
मरीज को क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) स्टेज 5 हो जाती है।
शरीर में यूरिया, क्रिएटिनिन, पोटैशियम अत्यधिक बढ़ जाता है।
मरीज को सांस लेने में तकलीफ, सूजन, उल्टी, कमजोरी, या बेहोशी जैसे लक्षण होते हैं।

डायलिसिस की प्रक्रिया

हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया:
मरीज को डायलिसिस मशीन से जोड़ा जाता है।
मशीन के माध्यम से रक्त को शरीर से बाहर निकालकर डायलाइज़र में भेजा जाता है।
डायलाइज़र अपशिष्ट पदार्थों को छानता है।
साफ रक्त को वापस शरीर में डाल दिया जाता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया:
मरीज के पेट में एक कैथेटर डाला जाता है।
डायलिसेट तरल पेट में डाला जाता है।
कुछ घंटों बाद तरल को बाहर निकाला जाता है और नया तरल डाला जाता है।
यह प्रक्रिया दिन में 3–5 बार दोहराई जाती है।

डायलिसिस के फायदे

जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
थकावट, उल्टी, भूख न लगना जैसे लक्षणों से राहत मिलती है।
शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
किडनी ट्रांसप्लांट तक जीवन बनाए रखने में मदद करता है।


डायलिसिस के जोखिम और साइड इफेक्ट्स

संक्रमण का खतरा (विशेषकर पेरिटोनियल डायलिसिस में)।
कम या ज्यादा रक्तचाप।
मांसपेशियों में ऐंठन।
खून की कमी (एनीमिया)।
हड्डियों की कमजोरी।
त्वचा पर खुजली।
थकावट और ऊर्जा की कमी।

डायलिसिस के दौरान देखभाल

स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
संतुलित और प्रोटीन युक्त आहार लें।
तरल पदार्थ का सेवन नियंत्रित करें।
दवाओं का सेवन नियमित रूप से करें।
डॉक्टर की सलाह अनुसार नियमित चेकअप कराएं।
डायलिसिस कब तक करना पड़ता है?
डायलिसिस की अवधि मरीज की स्थिति पर निर्भर करती है:
अस्थायी डायलिसिस: जब किडनी को अस्थायी रूप से आराम देने की जरूरत होती है।
दीर्घकालिक डायलिसिस: जब किडनी पूरी तरह खराब हो जाती है और ट्रांसप्लांट संभव नहीं होता।

निष्कर्ष

डायलिसिस एक जीवनरक्षक चिकित्सा प्रक्रिया है जो किडनी फेल होने की स्थिति में अत्यंत आवश्यक होती है। हालांकि यह किडनी के कार्यों की पूर्णतः नकल नहीं कर सकता, फिर भी यह मरीज को सामान्य जीवन जीने में सहायता करता है। समय पर निदान, सही चिकित्सा, संतुलित जीवनशैली और नियमित डायलिसिस से मरीज एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकता है।

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