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Khechari Mudra kya hai

खेचरी मुद्रा (Khechari Mudra) योग की एक अत्यंत रहस्यमयी और प्रभावशाली मुद्रा मानी जाती है। यह मुद्रा प्राचीन तंत्र और हठयोग ग्रंथों में वर्णित है, जैसे "हठयोग प्रदीपिका" और "गोरक्षसंहिता"।
🔹 खेचरी मुद्रा क्या है?

खेचरी मुद्रा एक योगिक क्रिया है जिसमें जीभ को पीछे की ओर घुमाकर तालु (soft palate) के पीछे नासिकाग्र (nasopharynx) तक ले जाया जाता है। यह क्रिया साधक को अमृत (divine nectar) प्राप्त करने, मन को स्थिर करने, और समाधि अवस्था तक पहुँचने में मदद करती है।


🔹 ‘खेचरी’ शब्द का अर्थ:

"खे" = आकाश / अंतरिक्ष
"चरी" = चलने वाली

अर्थात, जो आकाश में विचरण करे, वह खेचरी कहलाती है। इसका तात्पर्य यह है कि साधक की चेतना उच्च अवस्था (आकाश तत्व) में प्रवाहित होती है।


🔹 खेचरी मुद्रा कैसे करें? (प्रक्रिया)

> ⚠️ यह अभ्यास अनुभवी योग गुरु की देखरेख में ही करना चाहिए। शुरुआत में इसे स्वयं करना सुरक्षित नहीं है।


चरण 1: जीभ को लंबा करना (तालु छेदन की तैयारी)

1. प्रतिदिन जीभ को धीरे-धीरे खींचना (जैसे कपड़े से पकड़कर या विशेष यंत्र से)।


2. जीभ के नीचे की नस (फ्रेनुलम) को प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा काटना (इसे छेदन क्रिया कहते हैं)।


3. बाद में जीभ इतनी लंबी हो जाती है कि वह नासिका मार्ग में प्रवेश कर सके।



चरण 2: मुद्रा की स्थापना

1. जीभ को ऊपर की ओर मोड़ें और तालु के पीछे की ओर ले जाएँ।


2. धीरे-धीरे जीभ को नासिका मार्ग में प्रवेश कराएँ।


3. इस स्थिति में ध्यान केंद्रित करें और श्वास को सहज बनाए रखें।


🔹 लाभ (Benefits of Khechari Mudra)

शारीरिक लाभ मानसिक/आध्यात्मिक लाभ

अमृत स्राव को सक्रिय करता है मन को अत्यधिक स्थिर करता है
पाचनतंत्र मजबूत होता है ध्यान और समाधि में सहायक
दीर्घायु प्रदान करता है क्रोध, वासनाओं पर नियंत्रण
इंद्रियों पर नियंत्रण कुंडलिनी जागरण की कुंजी


🔹 हठयोग प्रदीपिका में उल्लेख:

> "चिच्छेद्य घंटिकामूलं चूर्णैस्तैलादिभिर्नरः।
ततो नाडीं विमुञ्चेच्च खेचर्यास्सिद्धये मुदा॥"
(ह.प्र. 3/33)



अर्थ: खेचरी मुद्रा की सिद्धि के लिए जीभ के नीचे की नस को काटकर, विशेष औषधियों से जीभ को लंबा किया जाता है।


🔹 सावधानियाँ:

यह एक अत्यंत गूढ़ और उन्नत योग अभ्यास है।
बिना गुरु मार्गदर्शन के करने से हानि हो सकती है।
शुरुआत में केवल तालु से जीभ लगाकर अभ्यास शुरू करें (बिना छेदन के)।


🔹 प्रारंभिक अभ्यास (बिना छेदन):

1. जीभ को तालु से लगाएँ और कुछ मिनट वहीं रखें।
2. इस दौरान नाक से श्वास लें और ध्यान केन्द्रित रखें।
3. नियमित अभ्यास से धीरे-धीरे जीभ लचीलापन पाती है।


🔚 निष्कर्ष:

खेचरी मुद्रा योग की राजमुद्राओं में से एक मानी जाती है। यह न केवल शरीर और मन को संयमित करती है, बल्कि अमृत-स्राव और समाधि की अवस्था तक साधक को ले जाती है। परंतु इसका अभ्यास धैर्य, संयम और गुरु मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।


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