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What is Aasan

भारतवर्ष की प्राचीन योग परंपरा में "आसन" का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। योगशास्त्र में 'आसन' न केवल शारीरिक स्थिति है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने की एक विधि भी है। पतंजलि के योगसूत्रों में कहा गया है – "स्थिरं सुखं आसनम्", अर्थात् जो स्थिति स्थिर और सुखद हो, वही आसन कहलाता है। यह शरीर को स्वस्थ, मन को शांत और आत्मा को जाग्रत करने का माध्यम है।


आसन की परिभाषा

"आसन" शब्द संस्कृत धातु "आस" से बना है, जिसका अर्थ होता है "बैठना" या "स्थिर रहना"। योग में आसन का तात्पर्य एक ऐसी शारीरिक स्थिति से है जिसमें व्यक्ति स्थिरता, सहजता और मन की एकाग्रता प्राप्त करता है।

आसन का उद्देश्य

शरीर को स्वस्थ बनाना नियमित रूप से आसनों के अभ्यास से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, रक्त संचार सुधरता है और आंतरिक अंगों की कार्यप्रणाली बेहतर होती है।
मन की शांति प्राप्त करना आसन मानसिक तनाव को कम करते हैं और एकाग्रता को बढ़ाते हैं।
प्राणायाम और ध्यान के लिए तैयारी जब शरीर स्थिर होता है तो प्राणायाम और ध्यान अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
चक्रों और नाड़ियों का शुद्धिकरण योगासन शरीर की सूक्ष्म नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) को सक्रिय करता है।

आसनों के प्रकार

आसनों को उनके अभ्यास और प्रभाव के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
1. स्थूल आसन (शारीरिक स्वास्थ्य के लिए)
ताड़ासन
त्रिकोणासन
वृक्षासन
पश्चिमोत्तानासन
भुजंगासन
2. ध्यानात्मक आसन (ध्यान हेतु उपयुक्त)
पद्मासन
सिद्धासन
सुखासन
वज्रासन
3. शक्ति वर्धक आसन (मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए)
शीर्षासन
मयूरासन
नवकासन
अर्धमत्स्येन्द्रासन
4. रिलैक्सिंग आसन (विश्राम देने वाले)
शवासन
बालासन
मकरासन

प्रमुख आसनों का वर्णन

1. पद्मासन (कमल की मुद्रा)
विधि: दोनों पैरों को क्रॉस करते हुए एक-एक पैर को विपरीत जांघ पर रखकर बैठें। लाभ: ध्यान में एकाग्रता, मेरुदंड सीधा रहता है, मानसिक शांति मिलती है।

2. भुजंगासन (सर्प मुद्रा)
विधि: पेट के बल लेटकर हाथों की सहायता से शरीर को ऊपर उठाएं, जैसे कोबरा फन उठाता है। लाभ: रीढ़ मजबूत होती है, पाचन सुधरता है, पीठ दर्द में राहत।

3. वृक्षासन (वृक्ष मुद्रा)
विधि: एक पैर पर खड़े रहकर दूसरे पैर को जांघ पर रखें और हाथों को ऊपर जोड़ें। लाभ: संतुलन की भावना बढ़ती है, मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।

4. त्रिकोणासन (त्रिकोण मुद्रा)
विधि: दोनों पैरों को फैलाकर खड़े रहें, फिर एक तरफ झुकें और हाथ नीचे व ऊपर फैलाएं। लाभ: मेरुदंड की लचीलापन बढ़ती है, पाचन ठीक होता है।

5. शवासन (मृत व्यक्ति की मुद्रा)
विधि: पीठ के बल लेट जाएं, हाथ-पैर ढीले छोड़ दें और संपूर्ण शरीर को शिथिल करें। लाभ: तनाव में अत्यधिक लाभकारी, शरीर और मन को गहराई से विश्राम देता है।

आसन करने के नियम


खाली पेट आसन करें – भोजन के 3-4 घंटे बाद ही आसन करना चाहिए।
स्वच्छ और शांत वातावरण हो – खुली हवा में या शांत कमरे में आसन करें।
धीरे-धीरे करें अभ्यास – जल्दीबाज़ी में या ज़ोर-ज़बरदस्ती से आसन न करें।
सही निर्देशों का पालन करें – योगगुरु या प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में अभ्यास करें।
आसन के बाद विश्राम आवश्यक है – हर आसन के बाद कुछ क्षण शवासन करें।

आसनों के लाभ


1. शारीरिक लाभ
मांसपेशियों की मजबूती
लचीलापन
पाचन क्रिया में सुधार
श्वसन प्रणाली की क्षमता में वृद्धि
रक्त परिसंचरण में सुधार
2. मानसिक लाभ
तनाव कम होता है
नींद में सुधार
एकाग्रता बढ़ती है
मन शांत रहता है
3. आध्यात्मिक लाभ
ध्यान की गहराई बढ़ती है
आत्म-चेतना में वृद्धि
चक्रों का जागरण

आसन और चिकित्सा


वर्तमान में योग चिकित्सा में भी आसनों का विशेष स्थान है। अनेक रोगों जैसे डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप, मोटापा, अवसाद, थायरॉइड आदि में चिकित्सक भी योगासन की सलाह देते हैं। वैज्ञानिक शोधों ने प्रमाणित किया है कि नियमित योगाभ्यास से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

योग में आसन की भूमिका – योगदर्शन के अनुसार


पतंजलि योगसूत्र में अष्टांग योग के आठ अंगों में आसन तीसरा अंग है। "स्थिरं सुखं आसनम्" (योगसूत्र 2.46) के अनुसार, आसन केवल शरीर का खिंचाव नहीं बल्कि मन और शरीर की स्थिरता का माध्यम है।
इसके बाद प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के अभ्यास संभव होते हैं। अतः आसन, योग की यात्रा की मजबूत नींव है।

सावधानियाँ


उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कमर दर्द या कोई विशेष रोग हो तो चिकित्सक या प्रशिक्षित योग शिक्षक से परामर्श अवश्य लें।
गर्भवती महिलाएं विशेष आसनों का ही अभ्यास करें।
यदि शरीर में अत्यधिक थकान या कमजोरी हो तो कठिन आसनों से बचें।

निष्कर्ष


आसन योग का अभिन्न अंग है, जो न केवल शारीरिक रूप से हमें फिट रखता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी संतुलन प्रदान करता है। आज की तनावपूर्ण जीवनशैली में नियमित योगासन का अभ्यास एक वरदान है। यह न केवल रोगों से रक्षा करता है बल्कि व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर भी अग्रसर करता है।

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